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रामचरितमानस: भाग-41 में क्या उजागर हुआ भ्रम और हरि कृपा पर? धर्म की नई दृष्टि Ramcharitmanas Reveals Divine Wisdom
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिष्ठित धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस का भाग-41 जीवन के गहनतम सत्यों को प्रकाशित करता है।
यह खंड संसार की क्षणभंगुरता और ईश्वर पर उसकी निर्भरता को विस्तृत रूप से समझाता है, जो धर्म के मूल सिद्धांतों का आधार है।
इसमें बताया गया है कि जिस प्रकार सीप में चाँदी का और सूर्य की किरणों में जल का भ्रम होता है, जो वास्तव में सत्य नहीं होता, फिर भी व्यक्ति उसे सच मान बैठता है, ठीक उसी तरह यह संसार भी भगवान हरि की सत्ता के आश्रित रहते हुए भी असत्य प्रतीत होता है, पर मनुष्य को दुःख देता है।
इस धर्म ग्रंथ में आगे कहा गया है कि यह सांसारिक भ्रम तभी दूर हो सकता है जब प्राणी को श्री रघुनाथजी, जो स्वयं एक महान देवता स्वरूप हैं, की असीम कृपा प्राप्त हो।
उनकी करुणा ही माया के इस जाल को भेद सकती है और जीव को वास्तविक ज्ञान की ओर ले जा सकती है।
यह दर्शन बताता है कि जैसे स्वप्न में सिर कटने का दुःख जागने पर ही समाप्त होता है, वैसे ही संसार का दुःख भी ईश्वरीय जागृति से ही दूर होता है।
इस प्रकार, रामचरितमानस का यह अंश धार्मिक शिक्षाओं का सार प्रस्तुत करता है।
यह पाठ उन सभी धर्म प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो जीवन के भ्रम और सत्य के बीच का अंतर समझना चाहते हैं।
श्री रघुनाथजी की कृपा ही एकमात्र मार्ग है जिससे देवता और मनुष्य के बीच का यह संबंध स्थापित होता है और भ्रम का पर्दा हटता है।
- संसार मायावी है, परंतु भगवान हरि की सत्ता पर आश्रित है।
- केवल श्री रघुनाथजी की कृपा से ही सांसारिक भ्रम दूर होता है।
- स्वप्न के दुःख की तरह, संसार का कष्ट भी ईश्वरीय जागृति से मिटता है।
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Posted on 23 November 2025 | Follow सत्यालेख.com for the latest updates.
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