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रामचरितमानस भाग-41: माया और भ्रम पर आध्यात्मिक ज्ञान के पहलू Ramcharitmanas Spiritual Life Mysteries
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस का 41वां भाग जीवन के गूढ़ रहस्यों और माया के स्वरूप पर गहरा प्रकाश डालता है, जो पाठकों को आध्यात्मिक बोध की ओर अग्रसर करता है।
इस खंड में, गोस्वामी तुलसीदास जी ने संसार के मिथ्यात्व और हरि पर उसकी निर्भरता को समझाया है।
यह बताया गया है कि जिस प्रकार सीप में चांदी का और सूर्य की किरणों में जल का भ्रम होता है, ठीक उसी तरह यह संसार भी असत्य होते हुए भी हमें दुःख देता है।
जैसे एक बुरा सपना बिना जागे दूर नहीं होता, वैसे ही सांसारिक मोह-माया के दुख भी बिना ईश्वरीय कृपा के समाप्त नहीं होते।
यह वर्णन धर्म के मूल सिद्धांतों को समझने में सहायक है।
भाग-41 स्पष्ट करता है कि परमपिता परमेश्वर श्री रघुनाथजी (जो एक प्रमुख देवता हैं) की असीम कृपा से ही इस मायारूपी भ्रम से मुक्ति मिल सकती है।
जिनकी महिमा का आदि और अंत वेदों (निगम) को भी अनुमान से ही ज्ञात है, उनकी भक्ति और आराधना ही इस जीवन-चक्र से पार पाने का एकमात्र मार्ग है।
यह अंश बताता है कि जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस पवित्र रामचरित्रमानस में गोता लगाते हैं, वे संसार रूपी पतंग के घोर ताप से कभी नहीं जलते, अपितु उन्हें विज्ञान और भक्ति की प्राप्ति होती है।
यह रामचरितमानस का संदेश है कि सच्ची पूजा और निर्मल प्रेम ही जीवन का सार है।
यह भाग केवल एक कथा नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक दर्शन है जो मोक्ष के पथ पर चलने वालों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करता है।
- संसार का असत्य स्वरूप और माया का भ्रम समझाया गया है।
- श्री रघुनाथजी की कृपा से ही सांसारिक भ्रम से मुक्ति का मार्ग।
- भक्तिपूर्वक रामचरितमानस पढ़ने से आध्यात्मिक लाभ व शांति मिलती है।
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Posted on 17 November 2025 | Check सत्यालेख.com for more coverage.
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