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स्वामी अवधेशानंद गिरि के जीवन सूत्र: निस्वार्थ सेवा का आध्यात्मिक धर्म क्या? Divine Welfare Human Responsibility
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, परमार्थ को ईश्वर का स्वाभाविक स्वरूप बताते हुए जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी गिरि ने मनुष्य को भी निरंतर दूसरों की भलाई के कार्य करते रहने का संदेश दिया है।
उन्होंने प्रकृति का उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस प्रकार एक वृक्ष अपनी छाल, छाया, गोंद, हरितिमा, गंध, फल-फूल, जड़ें और लकड़ियों से निस्वार्थ भाव से संसार को लाभ पहुंचाता है, उसी प्रकार हमें भी परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए।
वृक्षों से उत्पन्न होने वाली नमी और आद्रता बादलों को आकर्षित कर वर्षा का कारण बनती है, जिससे सृष्टि का कल्याण होता है।
यह प्रकृति का ऐसा निस्वार्थ भाव है जो हमें वास्तविक धर्म का मार्ग दिखाता है।
स्वामी अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र में यह आध्यात्मिक संदेश निहित है कि मानव जीवन का सार ही सेवा और समर्पण है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निस्वार्थ सेवा केवल दूसरों का भला नहीं करती, बल्कि व्यक्ति के स्वयं के भीतर भी शांति और संतोष का संचार करती है।
यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है जो व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर उत्थान करती है।
हमें अपने हर कर्म में इसी निष्ठा को बनाए रखना चाहिए, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, क्योंकि हर निस्वार्थ कर्म `पूजा` के समान है।
इस तरह, स्वामी अवधेशानंद जी गिरि का यह `ज्ञान` हमें `भक्ति` और `सेवा` के माध्यम से जीवन जीने की एक गहरी `समझ` प्रदान करता है।
उनका संदेश यह है कि जब हम प्रकृति के दिखाए मार्ग पर चलते हैं, तो हम न केवल दूसरों के लिए, बल्कि अपने स्वयं के `आध्यात्मिक` उत्थान के लिए भी `परोपकार` करते हैं, जिससे समाज में `धर्म` के मूल्य सुदृढ़ होते हैं।
- स्वामी अवधेशानंद गिरि ने प्रकृति से निःस्वार्थ सेवा की प्रेरणा दी।
- वृक्षों के समान निस्वार्थ भाव से परोपकार ही सच्चा धर्म है।
- निःस्वार्थ भलाई से आध्यात्मिक उन्नति और समाज कल्याण होता है।
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Posted on 26 November 2025 | Check सत्यालेख.com for more coverage.
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