Spiritual update:
कामदेव पर विजय के बाद नारद को क्यों मिला अहंकार का श्राप? धर्म रहस्य प्रकाशित Narada's Ego Spiritual Lesson
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, देवर्षि नारद जैसे महान तपस्वी के जीवन में भी अहंकार ने कैसे प्रवेश किया, यह कथा गहन आध्यात्मिक शिक्षा देती है।
सामान्यतः असंभव लगने वाला यह प्रसंग दर्शाता है कि तप और साधना के शिखर पर भी आत्म-परीक्षण और विनम्रता आवश्यक है।
नारद मुनि, जिन्होंने अपनी कठोर तपस्या से कामदेव जैसे शक्तिशाली देवता को भी पराजित किया था, उनके मन में उत्पन्न गर्व की भावना ने उन्हें एक अदृश्य चुनौती का सामना करने पर मजबूर कर दिया।
कामदेव ने अपने सभी बाण चला दिए और वातावरण को मदमय बनाने का हर संभव प्रयास किया, परंतु मुनि के मन में तनिक भी कंपन न हुआ।
पराजित होकर कामदेव ने देवसभा में देवराज इन्द्र को यह समाचार सुनाया।
इन्द्र सहित सभी देवता यह सुनकर चकित रह गए।
सभी ने नारद मुनि की प्रशंसा तो की, परंतु यह जानते हुए कि ऐसी असंभव विजय केवल प्रभु की कृपा से ही संभव होती है, सभी ने भगवान विष्णु के चरणों में शीश झुकाया।
यह धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि हर उपलब्धि का श्रेय परमात्मा को ही देना चाहिए।
इधर नारद मुनि के हृदय में संतोष के साथ थोड़ा गर्व भी उत्पन्न हो गया।
उन्होंने अपनी इस महान विजय को अपनी व्यक्तिगत तप शक्ति का परिणाम मान लिया और देवताओं द्वारा विष्णु को श्रेय दिए जाने की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया।
यह प्रसंग हमें आध्यात्मिक यात्रा में विनम्रता के महत्व की याद दिलाता है।
यह दर्शाता है कि अगाध पूजा और तप की पराकाष्ठा भी अहंकार से दूषित हो सकती है, जिसका परिणाम अंततः आत्म-विनाशकारी होता है।
- नारद मुनि ने अपनी तपस्या से कामदेव को पराजित किया।
- देवताओं ने नारद की प्रशंसा की पर भगवान विष्णु को श्रेय दिया।
- विजय के बाद नारद में उपजे अहंकार से श्राप का प्रसंग।
Related: Latest National News | Health Tips
Posted on 17 November 2025 | Follow सत्यालेख.com for the latest updates.
.jpg)
.jpg)