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कर्नाटक: क्या कांग्रेस का आंतरिक कलह उसके राजनीतिक भविष्य पर भारी पड़ेगा? Karnataka Congress Power Struggle
कर्नाटक में चल रहा सत्ता का संग्राम एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के भीतर के गहरे असंतोष को उजागर करता है।
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री पद को लेकर मचा घमासान स्पष्ट दर्शाता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी का अपने नेताओं पर नियंत्रण कमजोर पड़ गया है।
यह विवाद 2023 में सरकार गठन के दौरान तय हुए फॉर्मूले को लागू करने की शिवकुमार धड़े की मांग से उपजा है, जो पार्टी के भीतर की राजनीति को और उलझा रहा है।
कांग्रेस के इतिहास में सत्ता को लेकर यह पहला मौका नहीं है जब ऐसी उठापटक देखी जा रही है।
पार्टी अपने स्थापना काल से ही लगभग 70 बार टूटने और बिखरने के दौर से गुजरी है, जिसमें कई बड़े नेताओं ने इसका साथ छोड़ दिया है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस गंभीर संकट का सामना कर रही है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मिली चुनावी सफलताओं को छोड़ दें, तो बीते आठ वर्षों में देश की इस प्रमुख राजनीतिक पार्टी की हालत लगातार बिगड़ती जा रही है।
कांग्रेस, जो कभी भारतीय राजनीति की धुरी थी, अब अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।
हालिया कर्नाटक विवाद, जहां शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद न मिलने पर विद्रोह की आशंका है, पार्टी के भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के दौरान अशोक गहलोत के समर्थकों द्वारा की गई बगावत जैसी घटनाएं भी पार्टी के अंदरूनी ढाँचे को खोखला कर रही हैं।
यह स्पष्ट है कि यदि कांग्रेस अपने आंतरिक कलह पर काबू नहीं पाती है और नेताओं के बीच एकजुटता स्थापित नहीं करती, तो आगामी चुनाव में उसकी राह और भी मुश्किल हो सकती है।
यह स्थिति न केवल कांग्रेस के लिए, बल्कि देश की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है।
- कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद पर विवाद से कांग्रेस का अनुशासन सवालों में।
- कांग्रेस अपने इतिहास में 70 बार टूट चुकी है; 2014 से संकट गहराया।
- शिवकुमार धड़े की मांग और विद्रोह की आशंका कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती।
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Posted on 01 December 2025 | Stay updated with सत्यालेख.com for more news.
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