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भारत की राजनीति में मीडिया: क्या गंभीर चर्चाओं से ध्यान भटकाया जा रहा है? Politics Sports Media Sensationalism
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, आज के दौर में मीडिया का ध्यान गंभीर मुद्दों से हटकर सनसनीखेज हेडलाइंस की ओर मुड़ गया है, यह प्रवृत्ति न केवल खेल बल्कि देश की राजनीति में भी साफ दिखती है।
शेखर गुप्ता के कॉलम ने जिस तरह क्रिकेट कवरेज में "लाल गेंद" यानी खेल के मूल सिद्धांतों से नजरें फेरने की बात कही, वैसा ही अब राष्ट्रीय राजनीति में भी देखा जा रहा है, जहाँ गहन विश्लेषण के बजाय सतही विवादों को प्राथमिकता दी जा रही है।
हमारे टीवी समाचार चैनल और डिजिटल प्लेटफॉर्म अक्सर ऐसी रंग-बिरंगी राजनीतिक हेडलाइंस बनाते हैं, जो वास्तविक मुद्दों के सार को छिपा देती हैं।
जैसे क्रिकेट में एक खिलाड़ी के साधारण बयान को 'बौने का बदला' जैसी सनसनीखेज हेडलाइन का रूप दिया जाता है, वैसे ही राजनीति में भी 'चुनाव' के समय 'नेता' के छोटे से बयान या व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी को बड़ी खबर बनाकर पेश किया जाता है।
इससे महत्वपूर्ण नीतिगत बहसें, आर्थिक चुनौतियाँ या सामाजिक सुधारों पर चर्चा पीछे छूट जाती है।
'कांग्रेस' और 'बीजेपी' जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच की प्रतिद्वंद्विता को अक्सर एक नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे सार्वजनिक विमर्श की गहराई कम हो जाती है।
यह विडंबना है कि सोशल मीडिया के युग में, जहां हर बयान तुरंत वायरल हो सकता है, अपशब्दों का इस्तेमाल और व्यक्तिगत हमले राजनीतिक बहस का हिस्सा बन गए हैं, जिससे गंभीर राजनीति के लिए स्थान सिकुड़ रहा है।
मीडिया का यह रवैया जनता को वास्तविक तथ्यों और महत्वपूर्ण निर्णयों से दूर कर सकता है, जो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है।
जब मीडिया गंभीर मुद्दों से मुंह मोड़ लेता है, तब जनता को सच्ची और महत्वपूर्ण जानकारी से वंचित होना पड़ता है, जो एक मजबूत लोकतंत्र के लिए घातक है।
- मीडिया का फोकस खेल की तरह राजनीति में भी सनसनीखेज हेडलाइंस पर।
- गंभीर राजनीतिक मुद्दों से ध्यान भटकाकर तुच्छ बातों पर जोर।
- सच्ची जानकारी के अभाव में लोकतंत्र को चुनौती।
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Posted on 03 December 2025 | Visit सत्यालेख.com for more stories.
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