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पूर्व CJI गवई के आरक्षण पर विचार: भारतीय राजनीति और न्यायपालिका पर क्या असर? Cji Gavai Judicial Political Impact
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई ने सेवानिवृत्ति से पहले कुछ ऐसे महत्वपूर्ण वैधानिक और राजनीतिक विचार व्यक्त किए हैं, जिनके दूरगामी न्यायिक और राजनीतिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
उनके इन बयानों ने भारतीय राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है।
अल्पसंख्यक 'दलित बौद्ध' समुदाय से आने वाले पूर्व सीजेआई गवई ने रविवार को न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली का पुरजोर बचाव किया, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है।
इस प्रणाली पर अक्सर राजनीतिक दलों और कुछ नेता अपनी राय रखते रहे हैं।
उन्होंने अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) कोटा से क्रीमी लेयर, यानी संपन्न लोगों को बाहर रखने का भी समर्थन किया।
यह मुद्दा देश की आरक्षण राजनीति में लंबे समय से विवादास्पद रहा है और इसका असर आगामी चुनावों पर भी पड़ सकता है, जहां बीजेपी और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियां इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करती रही हैं।
इसके अलावा, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी महिला न्यायाधीश की नियुक्ति न कर पाने पर खेद व्यक्त किया, जो उच्च न्यायपालिका में लैंगिक संतुलन की कमी को उजागर करता है।
अपने आधिकारिक आवास पर पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत में, 52वें प्रधान न्यायाधीश गवई ने यह भी कहा कि वह संस्था को "पूर्ण संतुष्टि और संतोष की भावना के साथ" छोड़ रहे हैं और सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी कार्यभार स्वीकार नहीं करने के अपने संकल्प पर कायम रहेंगे।
यह घोषणा उन राजनीतिक चर्चाओं के बीच मायने रखती है जो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए नियुक्तियों से संबंधित होती हैं।
वह के. जी. बालकृष्णन के बाद भारतीय न्यायपालिका का नेतृत्व करने वाले दूसरे ऐसे व्यक्ति हैं, जो अनुसूचित समुदाय से आते हैं, और पहले बौद्ध सीजेआई भी हैं।
इन बयानों ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर एक गंभीर चिंतन को बढ़ावा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप आने वाले समय में देश की राजनीति में नई दिशाएँ दिख सकती हैं।
- पूर्व CJI गवई ने SC-ST आरक्षण से क्रीमी लेयर हटाने का समर्थन किया।
- उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली का पुरजोर बचाव किया।
- महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति न करने पर खेद व्यक्त किया, जिसके राजनीतिक असर होंगे।
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Posted on 26 November 2025 | Visit सत्यालेख.com for more stories.
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