लोकतंत्र पर खतरा: क्या विषमताएँ युद्ध से भी बड़ी चुनौती हैं राजनीति में? Harold Callender Gleichschaltung Article

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लोकतंत्र पर खतरा: क्या विषमताएँ युद्ध से भी बड़ी चुनौती हैं राजनीति में? Harold Callender Gleichschaltung Article

सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 1934 में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हेरोल्ड कैलेंडर का एक दूरदर्शी लेख ‘ग्लाइख्शालटुंग’ नामक एक नई परिघटना को उजागर करता है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘समन्वय’ था, लेकिन वास्तविक मायने जर्मन समाज का नाजीकरण थे।

यह लेख लोकतंत्र के क्रमिक पतन और तानाशाही के उदय को लेकर एक महत्वपूर्ण चेतावनी था।

ईसा पूर्व पांचवीं सदी में एथेंस में जन्मा लोकतंत्र का विचार मानवता के लिए एक क्रांतिकारी कदम था और इसने अमेरिका व भारत जैसे देशों में गहरी जड़ें जमाईं।

लेकिन इसकी व्यापकता और मजबूती के बावजूद, लोकतंत्र हमेशा से ही निष्कवच रहा है, और इसकी सुरक्षा के लिए निरंतर जागरूकता आवश्यक है।

हम अक्सर यह मान लेते हैं कि युद्ध या तख्तापलट जैसे अचानक और बड़े झटके ही लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

हालाँकि, कैलेंडर का विश्लेषण हमें एक अलग ही तस्वीर दिखाता है।

यह बताता है कि लोकतांत्रिक पतन के लिए किसी बड़े बाहरी आघात की आवश्यकता नहीं होती; बल्कि, चुनावी लोकतंत्र भी धीरे-धीरे, कदम-दर-कदम अधिनायकवाद के ऐसे स्तर तक खिसक सकता है जहाँ से वापसी असंभव हो जाती है।

विशेष रूप से, समाज में बढ़ती आर्थिक और सामाजिक विषमताएँ एक गंभीर चुनौती पेश करती हैं।

ये विषमताएँ अंदरूनी तौर पर लोकतंत्र की नींव को खोखला करती हैं और जनता के बीच असंतोष को बढ़ावा देती हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता और जनता दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

जब कोई राजनीतिक व्यवस्था जनता की मूलभूत आवश्यकताओं और समानता की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहती है, तो यह अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे सकती है।

यह केवल किसी बाहरी सैन्य खतरे का मामला नहीं है, बल्कि समाज के भीतर से पनपने वाली विषमताओं की राजनीति और कमजोर होती लोकतांत्रिक संस्थाएँ ही असली खतरा बनती हैं।

ऐसे में, एक सशक्त और जागरूक नागरिक समाज ही लोकतंत्र को इन छिपे हुए खतरों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

  • लोकतंत्र को युद्ध नहीं, विषमताओं से है बड़ा खतरा।
  • नाजी जर्मनी का 'ग्लाइख्शालटुंग' लोकतंत्र के पतन का उदाहरण।
  • चुनावी प्रक्रिया से भी आ सकता है तानाशाही का दौर।

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Posted on 27 November 2025 | Follow सत्यालेख.com for the latest updates.

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