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धर्म, राजनीति और सेवा: सत्ता में नैतिकता का नया सूत्र क्या है? Political Ethics Values Erosion
सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नैतिकता और मूल्यों का क्षरण एक गंभीर बहस का विषय बन गया है।
इस माहौल में, जहाँ हर निर्णय को लाभ-हानि के तराजू पर तौला जाता है, पं. विजयशंकर मेहता का 'सेवाभाव' का सिद्धांत एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
आज की राजनीति, एक तरह से, खरीद-फरोख्त का बड़ा बाजार बन गई है।
वोटों से लेकर नीतियों तक, हर चीज़ की एक कीमत तय होती दिखती है।
नेता अपने छवि निर्माण पर करोड़ों खर्च करते हैं, मानो वे कोई उत्पाद बेच रहे हों।
डिजिटल मीडिया, खासकर सोशल मीडिया, इस सौदेबाजी को चौबीसों घंटे जारी रखता है, जहाँ जनमत को खरीदा और बेचा जा रहा है।
इसका असर यह है कि सच्चे जनहितैषी कार्य भी अक्सर चुनावी गणित या व्यक्तिगत लाभ से जोड़कर देखे जाते हैं।
जनता को यह महसूस होता है कि कांग्रेस या बीजेपी जैसे बड़े दल भी अपने आदर्शों से भटककर केवल सत्ता के खेल में लगे हैं।
ऐसे में, पं. विजयशंकर मेहता का यह विचार कि हमें अपनी हर गतिविधि का 10% 'सेवा' को समर्पित करना चाहिए, राजनीतिक वर्ग के लिए विशेष महत्व रखता है।
यह केवल धन के दान तक सीमित नहीं है, बल्कि पद, शक्ति और समय का उपयोग निःस्वार्थ भाव से जन कल्याण के लिए करना है।
यदि एक नेता अपने कुल समय या संसाधनों का एक छोटा हिस्सा भी वास्तविक जनसेवा में लगाता है, तो यह उसकी राजनीतिक शुचिता को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
यह 'सेवा' की भावना, राजनीति के इस आपाधापी भरे माहौल में, नेताओं को अपनी नैतिक नींव मजबूत करने और जनता का विश्वास फिर से जीतने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
यह सिद्धांत आज के राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए एक महत्वपूर्ण सीख हो सकती है, ताकि वे सत्ता की दौड़ में अपने मूल आदर्शों से विचलित न हों और समाज में अपनी भूमिका को सार्थक बना सकें।
- राजनीति में नैतिक मूल्यों के क्षरण पर चिंता व्यक्त की गई है।
- पं. विजयशंकर मेहता ने 10% गतिविधियों को निःस्वार्थ सेवा में लगाने का सुझाव दिया।
- सेवाभाव से राजनीतिक शुचिता और जनता का विश्वास पुनः बहाल हो सकता है।
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Posted on 23 November 2025 | Keep reading सत्यालेख.com for news updates.
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