मुंबई घटना: क्या मोबाइल की लत सामाजिक जिम्मेदारी और राजनीति पर भारी पड़ रही है? Mumbai Public Apathy Mobile Use

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मुंबई घटना: क्या मोबाइल की लत सामाजिक जिम्मेदारी और राजनीति पर भारी पड़ रही है? Mumbai Public Apathy Mobile Use news image

मुंबई घटना: क्या मोबाइल की लत सामाजिक जिम्मेदारी और राजनीति पर भारी पड़ रही है? Mumbai Public Apathy Mobile Use

मुंबई में एक हृदयविदारक घटना ने सार्वजनिक स्थलों पर नागरिकों की उदासीनता और मोबाइल फोन के अत्यधिक इस्तेमाल पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सत्यालेख की रिपोर्ट के अनुसार, 20 मई 2025 को छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पर चार साल की आरोही अपनी मां की गोद में सो रही थी, जब एक पल की चूक से वह गायब हो गई।

महाराष्ट्र के सोलापुर से अपने पिता के इलाज के लिए मुंबई आए इस परिवार के लिए यह यात्रा एक चुनौती भरी थी।

भीषण गर्मी और सीमित संसाधनों के बावजूद, जब आरोही की मां की आंखें लगीं और वह उठीं, तो उन्होंने अपनी बच्ची को लापता पाया।

उनकी चीख ने स्टेशन पर मौजूद सभी को चौंका दिया, लेकिन विडंबना यह थी कि आस-पास फर्श पर बैठे अधिकांश लोग अपने मोबाइल फोन में इतने मग्न थे कि उन्होंने कुछ भी असामान्य होते नहीं देखा।

यह घटना समाज में बढ़ती डिजिटल निर्भरता और उससे उपजी सामाजिक लापरवाही की ओर इशारा करती है, जो हमारे सामूहिक राजनीति और सार्वजनिक सुरक्षा के ताने-बाने को प्रभावित करती है।

यह स्थिति केवल व्यक्तिगत चूक नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक समस्या को दर्शाती है जहाँ नागरिक अपनी तत्काल परिवेश के प्रति उदासीन हो रहे हैं।

अक्सर देखा जाता है कि रेलवे स्टेशन या बस अड्डों पर लोग अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं, जिससे वे अपने आसपास के पोस्टरों, घोषणाओं या अन्य महत्वपूर्ण संकेतों को भी नजरअंदाज कर देते हैं।

ऐसे में यदि उनसे किसी घटना के बारे में पूछा जाए, तो उनका उत्तर अक्सर 'नहीं' होता है, क्योंकि उनकी प्राथमिकताएं डिजिटल स्क्रीन तक सीमित हो जाती हैं।

इस तरह की घटनाएं यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारी सरकारों और नेताओं को सार्वजनिक जागरूकता और नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

एक सतर्क और जागरूक समाज ही अपने सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, और यह जिम्मेदारी केवल कानून व्यवस्था की नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति की है।

यह मुद्दा भविष्य की चुनाव चर्चाओं में भी स्थान पा सकता है, जहाँ सार्वजनिक सुरक्षा और सामाजिक व्यवहार के नियमन पर जोर दिया जा सकता है।

यह घटना हमें याद दिलाती है कि मोबाइल फोन से अपनी आँखें हटाकर एक बार अपने आसपास देखना कितना महत्वपूर्ण है।

सार्वजनिक स्थानों पर बढ़ती आपराधिक घटनाओं और लापता बच्चों की संख्या के बीच, यह सामाजिक निगरानी की कमी एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है।

राजनीति और प्रशासन को इस चुनौती का सामना करने के लिए नागरिकों में अधिक जिम्मेदारी और जुड़ाव की भावना को बढ़ावा देना होगा, ताकि एक सुरक्षित और जागरूक परिवेश का निर्माण हो सके।

  • मुंबई में 4 साल की आरोही का गुम होना, सार्वजनिक लापरवाही उजागर।
  • मोबाइल फोन की लत से नागरिकों में घटती सामाजिक जिम्मेदारी।
  • जनता और राजनीति के लिए सार्वजनिक सुरक्षा पर जागरूकता की आवश्यकता।

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Posted on 28 November 2025 | Keep reading सत्यालेख.com for news updates.

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